साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
मुबहम पयाम
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी