ज़ब्त-ए-गिर्या
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
जाने वाले क़मर को रोके कोई
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम