तुम गुनाहों से डर के जीते हो
आरज़ू के दिए जलाने से
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
दिल-जलों को सताने आए हैं
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं