सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस