ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 19)

ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 19)
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो

फ़रियाद की कोई लय नहीं है

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर

एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

चाहिए अच्छों को जितना चाहिए

चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश

बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए

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