ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 18)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर
घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा