ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 16)

ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 16)
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं

मैं उन्हें छेड़ूँ और वो कुछ न कहें

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

लाग़र इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का

लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी

क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़

क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है

कोई उम्मीद बर नहीं आती

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए

कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

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