ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 3)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
सादिक़ हूँ अपने क़ौल का 'ग़ालिब' ख़ुदा गवाह
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआफ़
रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब'
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
क़त्अ कीजे न तअ'ल्लुक़ हम से
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है
पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का
पिन्हाँ था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है