ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 4)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
नज़र लगे न कहीं उन के दस्त-ओ-बाज़ू को
नज़र लगे न कहीं इन के दस्त-ओ-बाज़ू को
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद
नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'
मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीद
मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी है
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
मिसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था