आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
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गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए