जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2547) Peoples Rate This
अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
तू और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार