आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
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न काफ़िर से ख़ल्वत न ज़ाहिद से उल्फ़त
क्या मज़ा हो जो किसी से तुझे उल्फ़त हो जाए
हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर
न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे
सहरा में 'हवस' ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की मदद से
हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी
हरगिज़ न मिरे महरम-ए-हमराज़ हुए तुम
हम से वारफ़्ता उल्फ़त हैं बहुत कम पैदा
रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
मैं न समझा बुलबुल बे-बाल-ओ-पर ने क्या कहा
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले