मोहसिन भोपाली कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मोहसिन भोपाली (page 2)
नाम | मोहसिन भोपाली |
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अंग्रेज़ी नाम | Mohsin Bhopali |
जन्म की तारीख | 1932 |
मौत की तिथि | 2007 |
जन्म स्थान | Karachi |
ज़ख़्म-ख़ुर्दा तो उसी का था सिपर क्या लेता
यूँही तो शाख़ से पत्ते गिरा नहीं करते
ये तय हुआ है कि क़ातिल को भी दुआ दीजे
ये मेरे चारों तरफ़ किस लिए उजाला है
वो बर्ग-ए-ख़ुश्क था और दामन-ए-बहार में था
वक़्त के तक़ाज़ों को इस तरह भी समझा कर
तू कभी ख़ुद को बे-ख़बर तो कर
ता-देर हम ब-दीदा-ए-तर देखते रहे
सरों की फ़स्ल काटी जा रही है
सहमे सहमे चलते फिरते लाशे जैसे लोग
रात भर जीने से क्या शम-ए-शबिस्ताँ की तरह
निगार-ए-सुब्ह-ए-दरख़्शाँ से लौ लगाए हुए
नज़र मिला के ज़रा देख मत झुका आँखें
मैं लफ़्ज़ों के असर का मो'जिज़ा हूँ
लफ़्ज़ तो हों लब-ए-गुफ़्तार न रहने पाए
क्या ज़रूरी है अब ये बताना मिरा
ख़बर क्या थी न मिलने के नए अस्बाब कर देगा
जिस का दर्द बटाओगे
जाम-ए-तही क़ुबूल न था ग़म समो लिए
जाहिल को अगर जेहल का इनआ'म दिया जाए
हक़ाएक़ को भुलाना चाहते हैं
है वज्ह-ए-तमाशा-ए-जहाँ दिल-शिकनी भी
एहतिमाम-ए-रसन-ओ-दार से किया होता है
दोस्तो बारगह-ए-क़त्ल सजाते जाओ
चाहत में क्या दुनिया-दारी इश्क़ में कैसी मजबूरी
बिछड़ के तुझ से मयस्सर हुए विसाल के दिन
बे-सबब लोग बदलते नहीं मस्कन अपना
बे-ख़बर सा था मगर सब की ख़बर रखता था
बना-ए-इश्क़ है बस उस्तुवार करने तक
अज़्मत-ए-फ़न के परस्तार हैं हम