उस से मिल कर उसी को पूछते हैं
बे-ख़याली सी बे-ख़याली है
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(866) Peoples Rate This
नज़र मिला के ज़रा देख मत झुका आँखें
अब के मौसम में ये मेयार-ए-जुनूँ ठहरा है
बे-ख़बर सा था मगर सब की ख़बर रखता था
तू कभी ख़ुद को बे-ख़बर तो कर
क्या ज़रूरी है अब ये बताना मिरा
दोस्तो बारगह-ए-क़त्ल सजाते जाओ
एक मुद्दत की रिफ़ाक़त का हो कुछ तो इनआ'म
बात कहने की हमेशा भूले
जो मिले थे हमें किताबों में
जिस का दर्द बटाओगे
निगार-ए-सुब्ह-ए-दरख़्शाँ से लौ लगाए हुए
बना-ए-इश्क़ है बस उस्तुवार करने तक