वही रिश्ते वही नाते वही ग़म
बदन से रूह तक उकता गई थी
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Anwar Masood
Jaun Eliya
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किरन तो घर के अंदर आ गई थी
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
शब के ख़िलाफ़ बरसर-ए-पैकार कब हुए
पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा
ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरना
इक वहम की सूरत सर-ए-दीवार-ए-यक़ीं हैं
ज़रूरत कुछ ज़ियादा हो न जाए
हर-चंद जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ
फिर यूँ हुआ कि मुझ पे ही दीवार गिर पड़ी
मिरी नुमूद किसी जिस्म की तलाश में है
ख़याल रखना