फिर मुझे मिल नदी किनारे कहीं
फिर बढ़ा मान आ के राहों का
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इक अक्स दिल के तट से बे-इख़्तियार फूटे
नई-निकोर निराली पर
पाटी हैं हम ने बिफरी चनाबें तिरे लिए
चौखटा दिल का यहाँ है हू-ब-हू तुझ सा कोई
सूना लगा बग़ैर तिरे मुझ को सारा घर
यख़-बस्ता ठंडकों में उजाला जड़ा हुआ
उम्रों के बुझते मामूरे में
हम वो लोग हैं जो चाहत में
ज़िद न कर मत समय मिलन का उजाड़
और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है
आँखों के आबगीने बहे फूट फूट कर
दिल मिटे प्यार की अपीलों पर