ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत
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साथी से
कूचा-ए-इश्क़ से कुछ ख़्वाब उठा कर ले आए
काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को
शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ
मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं
अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
कमाल-ए-आदमी की इंतिहा है
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है
हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
निगार-ए-सुब्ह की उम्मीद में पिघलते हुए