परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ (page 2)

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ (page 2)
नामपरवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
अंग्रेज़ी नामParveen Umm-e-Mushtaq

चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में

भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों

बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल

बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला

ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई

अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन

अगर लोहे के गुम्बद में रखेंगे अक़रबा उन को

ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल

वक़्त पर आते हैं न जाते हैं

पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़

फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह

पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना

निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत

नेक-ओ-बद की जिसे ख़बर ही नहीं

नर्गिसीं आँख भी है अबरू-ए-ख़मदार के पास

नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं

न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था

मुतकब्बिर न हो ज़रदार बड़ी मुश्किल है

मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद

मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच

मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में

मेरे लिए हज़ार करे एहतिमाम हिर्स

मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ

मैं चुप कम रहा और रोया ज़ियादा

महफ़िल में ग़ैर ही को न हर बार देखना

कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई

किसी की किसी को मोहब्बत नहीं है

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम हक़ पे हैं बातिल से क्या निस्बत

खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में

ख़ाक कर डालें अभी चाहें तो मय-ख़ाने को हम

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