इसी हुजूम में लड़-भिड़ के ज़िंदगी कर लो
रहा न जाएगा दुनिया से दूर जा कर भी
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
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वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए
बजा है हम ज़रूरत से ज़ियादा चाहते हैं
मुसाफ़िरत के तहय्युर से कट के कब आए
निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा
वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह
उस ने इक दिन भी न पूछा बोल आख़िर किस लिए
सत्ह-बीं थे सब, रहे बाहर की काई देखते
सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द
छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से
जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया
दर्द ग़ज़ल में ढलने से कतराता है
ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे