उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
कई बरस में हुआ है मिज़ाज-दाँ सय्याद
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दीवानों से कह दो कि चली बाद-ए-बहारी
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
पास-ए-दीं कुफ़्र में भी था मलहूज़
उल्फ़त न करूँगा अब किसी की
रुतबा-ए-कुफ़्र है किस बात में कम ईमाँ से
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
क़ैस समझा मिरी लैला की सवारी आई
परों को खोल दे ज़ालिम जो बंद करता है
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
आज इंकार न फ़रमाइए आप
खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद