छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तक
लौट आता हूँ कि अब कौन उसे जाता देखे
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ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
मतलूब है क्या अब यही कहते नहीं बनती
शुमार मैं न करूँगा फ़िराक़ के शब ओ रोज़
तिरा मैं क्या करूँ ऐ दिल तुझे कुछ भी नहीं आता
मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
ये किस के आने के इम्काँ दिखाई देते हैं
हैराँ हूँ हासिदों को पता कैसे चल गया
हौसला है तो सफ़ीनों के अलम लहराओ
भटकती हैं ज़माने में हवाएँ
ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ
सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो