मुवाफ़क़त करे क्यूँ मय-कशों सती ज़ाहिद
इधर शराब उधर मस्जिद-ओ-मुसल्ला है
Gulzar
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हिज्र की आग में अज़ाब में न दे
सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं
किया ग़म ने सरायत बे-निहायत
जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का
ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा
दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा
तिरी ज़ुल्फ़ ज़ुन्नार का तार है
इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ
फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा