आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
अफ़्साने हैं मेरे तेरे
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नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
नज़्म
आग़ोश में आ कि कामरानी कर लूँ
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
अरबाब-ए-वफ़ा की जाँ-गुदाज़ी देखी
तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
इक फ़क़त याद है जाना उन का