दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'
आँख में फैलता गया काजल
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नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
मेरा जीना है सेज काँटों की
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
दिन ढला शाम हुई फूल कहीं लहराए
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं