कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म
मेरे बिस्तर में ये तलवारें कहाँ से आ गईं
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(920) Peoples Rate This
अभी ज़िंदा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम को
चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद
नहीं मालूम आख़िर किस ने किस को थाम रक्खा है
छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
तंहाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा
ज़ेहनों की कहीं जंग कहीं ज़ात का टकराव
अपने अतवार में कितना बड़ा शातिर होगा
जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी
आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से