झूट भी सच की तरह बोलना आता है उसे
कोई लुक्नत भी कहीं पर नहीं आने देता
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रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे
जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी
मैं तुम्हें फूल कहूँ तुम मुझे ख़ुश्बू देना
दिलों के बीच न दीवार है न सरहद है
कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है
शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ
शिकायतों की अदा भी बड़ी निराली है
अमीर-ए-शहर इस इक बात से ख़फ़ा है बहुत
बदन पर सब्ज़ मौसम छा रहे हैं
गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए