चाहत का जब मज़ा है कि वो भी हों बे-क़रार
दोनों तरफ़ हो आग बराबर लगी हुई
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ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
गुदगुदाया जो उन्हें नाम किसी का ले कर
फ़ित्ना-गर शोख़ी-ए-हया कब तक
गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल
वो किसी से तुम को जो रब्त था तुम्हें याद हो कि न याद हो
दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या