आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा
फूँकों से ये चराग़ बुझाया न जाएगा
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
सादा समझो न इन्हें रहने दो दीवाँ में 'अमीर'
जिस ग़ुंचा-लब को छेड़ दिया ख़ंदा-ज़न हुआ
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
फूलों में अगर है बू तुम्हारी
तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
मानी हैं मैं ने सैकड़ों बातें तमाम उम्र
शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़
नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का