हर तरफ़ तू नज़र आता है जिधर जाता हूँ
तेरे इम्कान से हिजरत नहीं कर सकता मैं
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अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में
मैं और मेरी तन्हाई
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया
जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
मैं तुम्हारे लिए ले के आया हूँ
बुझने दे सब दिए मुझे तन्हाई चाहिए
मिट के आसूदा हो गया हूँ मैं
रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
ये भी आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बहुत है मुझ को
इंहिराफ़
पुर्सा