हर इक जगह तिरी बर्क़-ए-निगाह दौड़ गई
ग़रज़ ये है कि किसी चीज़ को क़रार न हो
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(817) Peoples Rate This
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी
शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए
ख़ुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए-दीवाना बरसों से
पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
सामने उन के तड़प कर इस तरह फ़रियाद की
रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में
वो शोरिशें निज़ाम-ए-जहाँ जिन के दम से है
ऐ शैख़ वो बसीत हक़ीक़त है कुफ़्र की
इश्क़ है इक कैफ़-ए-पिन्हानी मगर रंजूर है
ज़ौक़-ए-सरमस्ती को महव-ए-रू-ए-जानाँ कर दिया
आलम से बे-ख़बर भी हूँ आलम में भी हूँ मैं