Love Poetry of Bashir Badr (page 2)
नाम | बशीर बद्र |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Bashir Badr |
जन्म की तारीख | 1935 |
जन्म स्थान | Bhopal |
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर
बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
बहुत दिनों से है दिल अपना ख़ाली ख़ाली सा
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है
वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
तारों भरी पलकों की बरसाई हुई ग़ज़लें
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
शाम आँखों में आँख पानी में
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे