शिफ़ा क्या हो नहीं सकती हमें लेकिन नहीं होती
दवा क्या कर नहीं सकते हैं हम लेकिन नहीं करते
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उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें
ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
क्यूँ मिरा हाल क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
वो उन का वस्ल में ये कह के मुस्कुरा देना
आँसू मिरी आँखों में हैं नाले मिरे लब पर
बैठता है हमेशा रिंदों में
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
नाले में कभी असर न आया
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं