Islamic Poetry of Fani Badayuni
नाम | फ़ानी बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Fani Badayuni |
जन्म की तारीख | 1879 |
मौत की तिथि | 1941 |
जन्म स्थान | Badayun |
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
ज़ब्त अपना शिआर था न रहा
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ
यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था
वो मश्क़-ए-ख़ू-ए-तग़ाफ़ुल फिर एक बार रहे
वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा
वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला
तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था
सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे
सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है
क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मा'लूम
मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा
मेरे लब पर कोई दुआ ही नहीं
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
कुछ कम तो हुआ रंज-ए-फ़रावान-ए-तमन्ना
कुछ बस ही न था वर्ना ये इल्ज़ाम न लेते
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले
ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को
जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
जब दिल में तिरे ग़म ने हसरत की बना डाली
इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर
हम मौत भी आए तो मसरूर नहीं होते
हो काश वफ़ा वादा-ए-फ़र्दा-ए-क़यामत