Love Poetry (page 209)
चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ
अज़्म शाकरी
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
अज़्म शाकरी
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
अज़्म शाकरी
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
अज़्म बहज़ाद
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा
अज़्म बहज़ाद
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा
अज़्म बहज़ाद
शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई
अज़्म बहज़ाद
मैं ने कल ख़्वाब में आइंदा को चलते देखा
अज़्म बहज़ाद
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
अज़्म बहज़ाद
मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता
अज़्म बहज़ाद
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
अज़्म बहज़ाद
खुलता नहीं कि हम में ख़िज़ाँ-दीदा कौन है
अज़्म बहज़ाद
कहीं गोयाई के हाथों समाअत रो रही है
अज़्म बहज़ाद
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
अज़्म बहज़ाद
दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है
अज़्म बहज़ाद
बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ
अज़्म बहज़ाद
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
अज़लान शाह
तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन
अज़लान शाह
तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को
अज़लान शाह
चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती
अज़लान शाह
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
अज़लान शाह
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
अज़लान शाह
समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने
अज़लान शाह
पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती
अज़लान शाह
माँगना ख़्वाहिश-ए-दीदार से आगे क्या है
अज़लान शाह
किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
अज़लान शाह
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं
अज़लान शाह
दूसरा रुख़ नहीं जिस का उसी तस्वीर का है
अज़लान शाह
दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
अज़लान शाह
शायद यही किताब-ए-मोहब्बत हो ला-जवाब
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी