Love Poetry (page 402)
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
आसी ग़ाज़ीपुरी
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना
आसी ग़ाज़ीपुरी
सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है
आसी ग़ाज़ीपुरी
रविश उस चाल में तलवार की है
आसी ग़ाज़ीपुरी
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
आसी ग़ाज़ीपुरी
फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
आसी ग़ाज़ीपुरी
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
आसी ग़ाज़ीपुरी
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
आसी ग़ाज़ीपुरी
कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
आसी ग़ाज़ीपुरी
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
आसी ग़ाज़ीपुरी
उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़
आसी फ़ाईकी
उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा
आसी फ़ाईकी
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
आशुफ़्ता चंगेज़ी
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
आशुफ़्ता चंगेज़ी
'आशुफ़्ता' अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें
आशुफ़्ता चंगेज़ी
सहीह कह रहे हो
आशुफ़्ता चंगेज़ी
परछाइयाँ पकड़ने वाले
आशुफ़्ता चंगेज़ी
पहला ख़ुत्बा
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दयार-ए-ख़्वाब
आशुफ़्ता चंगेज़ी
अक़्द-नामे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
सिलसिला अब भी ख़्वाबों का टूटा नहीं
आशुफ़्ता चंगेज़ी
रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की
आशुफ़्ता चंगेज़ी
पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए
आशुफ़्ता चंगेज़ी
पनाहें ढूँढ के कितनी ही रोज़ लाता है
आशुफ़्ता चंगेज़ी