Love Poetry (page 401)
नसरी नज़्म
आसी रिज़वी
उन को मैं ने अपना कहा है
आसी रामनगरी
तुझे हम याद हर-दम ऐ सितम ईजाद करते हैं
आसी रामनगरी
सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए
आसी रामनगरी
क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा
आसी रामनगरी
मंज़िल पे ले के पहुँचेगा अज़्म-ए-जवाँ मुझे
आसी रामनगरी
मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
आसी रामनगरी
लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है
आसी रामनगरी
क्या मसर्रत है पूछिए हम से
आसी रामनगरी
ख़्वाब में आओ मिरे रंगीन ख़्वाबों की तरह
आसी रामनगरी
हैं अहल-ए-चमन हैराँ ये कैसी बहार आई
आसी रामनगरी
ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है
आसी रामनगरी
दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
आसी रामनगरी
दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है
आसी रामनगरी
अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है
आसी रामनगरी
मैं आख़िर आदमी हूँ कोई लग़्ज़िश हो ही जाती है
आसी करनाली
रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता
आसी करनाली
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
आसी ग़ाज़ीपुरी
तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
आसी ग़ाज़ीपुरी
मिलने वाले से राह पैदा कर
आसी ग़ाज़ीपुरी
मेरी आँखें और दीदार आप का
आसी ग़ाज़ीपुरी
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
किस को देखा उन की सूरत देख कर
आसी ग़ाज़ीपुरी
ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल
आसी ग़ाज़ीपुरी
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी