जिए गरचे इसी दुनिया में हम भी
मगर दुनिया हमारी और ही थी
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आँख ने धोका खाया था या साया था
कभी लौट आया मैं दश्त से तो ये शहर भी
दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो
हम ठहरे रहेंगे किसी ताबीर को थामे
ये मंज़र बे-दर-ओ-दीवार होता
दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा
पुकारते थे मुझे आसमाँ मगर मैं ने
ये मोहब्बत भी एक नेकी है
नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं
कुछ रोज़ अभी और है ये आइना-ख़ाना
अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है