मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
गर्मी का मौसम
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
रात
नसीहत
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
हवा और सूरज का मुक़ाबला