होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
मुलम्मा की अँगूठी
अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
हवा और सूरज का मुक़ाबला
कछवा और ख़रगोश