बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
मुलम्मा की अँगूठी
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
दाल की फ़रियाद
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है