तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
हमारी गाय
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
क़ौस-ए-क़ुज़ह
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
एक पौदा और घास
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद