चंद लम्हों को तेरे आने से
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
अपने आईना-ए-तमन्ना में
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
इक ज़रा रसमसा के सोते में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम