तितली कोई बे-तरह भटक कर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं