ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
तितली कोई बे-तरह भटक कर
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
इक ज़रा रसमसा के सोते में
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल