दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
इक ज़रा रसमसा के सोते में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
चंद लम्हों को तेरे आने से