यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
चंद लम्हों को तेरे आने से
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
अपने आईना-ए-तमन्ना में
तितली कोई बे-तरह भटक कर
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा