चंद लम्हों को तेरे आने से
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा