उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
रात जब भीग के लहराती है
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
चंद लम्हों को तेरे आने से
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर