पास रह कर जुदाई की तुझ से
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
उस के और अपने दरमियान में अब
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
शर्म दहशत झिझक परेशानी
साल-हा-साल और इक लम्हा
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल