पास रह कर जुदाई की तुझ से
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
शर्म दहशत झिझक परेशानी
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल