मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
साल-हा-साल और इक लम्हा
उस के और अपने दरमियान में अब
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था